24 साल पहले वह देश की सबसे पहली टेस्ट ट्यूब बेबी थी। फिर दस साल की उम्र में कलकत्ता में पी।सी. लाल की ट्रेनिंग ले रही देश की सबसे कम उम्र की जादूगरनी बनी। बेढब आंकड़ों वाले गणित में शकुंतला देवी के तिलिस्म को चुनौती देती भी देखी गयी। आई.आई.टी. में पढ़ाई करने बन गई इंजीनियरिंग कॉलेज की प्रोफेसर। अब ये दमकता हुआ चेहरा चमक रहा है मुम्बई के स्पेशल एक्जि़क्यूटिव ऑफिसर के तौर पर। मिलिए बचपन से ही अजूबा रहीं कृति पारेख से।
प्रोफेसर कृति पारेख की उपलब्धियों के आगे तमाम हस्तियां बौनी नजर आती हैं। कृत्रिम टेस्ट ट्यूब प्रणाली से इस दुनिया में कदम रखने वाले कृति इंजीनियरिंग कॉलेज की अपनी पूरी आमदनी ओपेरा हाउस के करीब गांवदेवी के शारदा मंदिर हाईस्कूल के बच्चों के लिए दान करती हैं। इतना ही नहीं, समाजसेवा की ये जादूगरनी पर्यावरण के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण काम कर रही हैं और इसके लिए उन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा 'ग्लोबल 500 रोल ऑफ ऑनर अवार्ड भी मिल चुका है।
1984 में टेस्ट ट्यूब में परीक्षण कर रहे कलकत्ता के वुडलैंड नर्सिंग होम की डॉ. ज्योत्सना पारेख की टीम को क्या पता था कि उनकी ये कृति इतने क्षेत्रों में नाम कमायेगी। महाराष्ट्र सरकार ने सबसे कम उम्र का विशेष कार्यकारी अधिकारी (एसईओ) नियुक्त किया है। बतौर कृति उन्हें बचपन से ही कुछ अलग करने की इच्छा थी और माता-पिता उनके प्रेरणास्रोत रहे, जिन्होंने हर काम को पूरी शिद्दत से करने को प्रोत्साहित किया। वैसे, लिम्का बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दो बार नाम दर्ज कराने वाली कृति ने संस्कृत से बी.ए. भी किया है। ये कृति शांत नहीं बैठ सकती। हाल ही शुरू हुए चिल्ड्रेन नोबेल प्राइज की कोर कमेटी में वे भारत के लिए प्रतिनिधित्व का काम भी करती हैं।
सामान्य तथा मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के मानसिक विकास के लिए कुछ करने की प्रबल इच्छा रखने वाली कृति माइंड ट्रेनर का काम करती हैं और उनके बालमन को किसी कार्य विशेष के प्रति रोकने की परंपरा से हटकर मन को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहती हैं। कृति ने 'बियॉन्ड द थ्रेशॉल्ड ऑफ माइंड नामक शोध आधारित पुस्तक लिखी है, जिसमें उन्होंने मन को रोकने की बजाय इसे आगे बढ़ाने पर बल दिया है। इसके अलावा वे दो अन्य पुस्तकों पर भी काम कर रही हैं, जिसमें पहली युवाओं के लिए लिखी जाने वाली भगवद् गीता है तथा दूसरी योग व उसकी क्रियाओं पर आधारित पुस्तक है। गीता पर आधारित पुस्तक में उन्होंने परंपरागत तथ्यों को यथावत रखते हुए इसके दर्शन को युवाओं के मस्तिष्क के लिहाज से सरल भाषा में परोसने की कोशिश की है, जो अभी प्रकाशित होने वाली है।
सर्वेश पाठक
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