Saturday, October 3, 2009

ईद पर दिया किडनी का तोहफा

मौत के बाद भी 'जिंदा रहेंगी वंदना
'रहें न रहें हम, महका करेंगे..! इन पंक्तियों को चरितार्थ कर दिखाया है विले पार्ले की वंदना पीयूष ठाकर ने। वंदना अब इस दुनिया में नहीं हैं, फिर भी वह किसी नेत्रहीन की आंखें बन दुनिया देखेंगी, किसी का लीवर बन पोषित होंगी, किसी की किडनी बन जीवन जीएंगी। करीब दस दिन पहले सड़क हादसे की शिकार वंदना की किडनी ईद के मौके पर नन्हे इकरम को बतौर तोहफा दी गई। इकरम खां (11) के लिए यह ईदी जीवन पर्यंत जीने का सबब बनेगी। किडनी ही नहीं, वंदना की आंखें और लीवर भी दान किए गए हैं और समय रहते यदि कोई उनके हृदय के लिए आया होता, तो वे धड़कन भी बनीं होतीं।पेशे से शिक्षिका रहीं वंदना के 53 साल परिवार और समाज हित में बीत गए, और असमय मौत के बाद उनके शरीर ने भी कइयों को जिंदगी दी।
किसी अचंभे समान इस महादान की चर्चा करते हुए वंदना के बड़े बेटे पुनीत (29) बताते हैं कि मां की समाजसेवी छवि को देखते हुए पूरे परिवार ने सोच-विचार कर उन्हें इस तरह की श्रद्धांजलि देने का मन बनाया। बतौर पुनीत मां हमेशा दूसरों के दुखदर्द बांटने झट से पहुंच जाती थीं, उन्हें क्या पता था कि 16 सितंबर की रात उनके जीवन और हमारे परिवार के लिए कितनी गहरी होने वाली है। उस दिन वे किसी रिश्तेदार के यहां से मिलकर लौट रही थीं और विलेपार्ले ब्रिज पर चढ़ते वक्त किसी कार से टक्कर लग गई। सिर में गंभीर चोट लगी, उन्हें कोपर अस्पताल ले जाया गया, जहां प्रारंभिक जांच के बाद अंधेरी के बीएसईएस अस्पताल में भर्ती कराया गया। सर्जरी हुई, हालात नाजुक थे, डॉक्टरों ने बताया कि अगर कोमा में होतीं, तो उम्मीद की जा सकती थी, लेकिन मामला बे्रन डेड का था और वापसी की संभावना नहीं के बराबर..। लाख जतन के बावजूद कुछ नहीं हो पाया, तो लगा कि आजीवन हर किसी को संजोने वाली मां के लिए इससे अच्छी श्रद्धांजलि क्या होगी?
जीवनसंगिनी से बिछुड़े पीयुष ठाकर मर्माहत हैं। उनका कहना है कि मेरी तो मानसिक ताकत ही चली गई। उन्हें वंदना को नहीं बचा पाने का मलाल तो है, लेकिन इस महादान ने बोझिल मन की आकुलता को घटा दिया है। छोटा बेटा तरंग (24) भी मां की याद को संजोए इस दान से थोड़ी राहत महसूस कर रहा है। वहीं, वंदना की किडनी बतौर ईदी पाने वाले नन्हे इकरम के परिजन ठाकर परिवार का शुक्रिया अदा करते नहीं थक रहे हैं। इकरम बीते दो सालों से किडनी के मर्ज से परेशान था और जीवन से हार मान चुकने के बाद जिंदगी की लौ मिलते ही चहक उठा। शुरू में तो ठाकर परिवार ने रिश्तेदारों का विरोध झेला, मगर अब सभी सराह रहे हैं, अस्पताल व पुलिसकर्मियों ने भी हरसंभव मदद दी। अपने इस कार्य से ठाकरे परिवार समाज को संदेश देना चाहता है कि यदि हम किसी के लिए कुछ कर सकें, तो इससे बड़ा महात्म्य क्या होगा। वंदना ने 'जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी की जो मिसाल दी, वह हर किसी के लिए एक प्रेरणा है।
सर्वेश पाठक

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