Sunday, September 15, 2013

न्युक्लियर एनर्जी का विरोध नहीं, स्वागत करें

 

प्रधानमंत्री द्वारा तारापुर में दूसरे पॉवर रिएक्टर फ्यूएल रिप्रॉसेसिंग प्लांट के उद्घाटन ने रिएक्टर्स की दुनियां में नई क्रांति ला दी है। रिएक्टर्स और एटमिक एनर्जी से जुड़े सवालात पर भाभा एटमिक रिसर्च सेंटर, मुंबई के तत्कालीन डाइरेक्टर डॉ. रतन कुमार सिन्हा (वर्तमान अध्यक्ष, परमाणु ऊर्जा आयोग)  से सर्वेश पाठक की बातचीत के अंश :



जैतापुर न्युक्लियर पावर प्लांट को लेकर हो रहे विरोध पर आपका क्या कहना है?
ऐसा कुछ भी नहीं है कि पब्लिक को नुकसान हो। अफवाहें उड़ती हैं, लेकिन ऐसा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संभव नहीं। सुरक्षा की बात है, तो परमाणु ऊर्जा पर जितनी गहराई से रिसर्च हुआ है, उतना किसी क्षेत्र में नहीं हुआ। पूरा अंतरराष्ट्रीय सिस्टम बना है, जिस पर इंटरनैशनल कोड और गाइडेंस निर्धारित है। इंटरनैशनल रेग्युलेटरी के तहत सभी एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं।

आशंकाएं हैं कि लिकेज या रेडिएशन से आसपास का जनजीवन प्रभावित होगा?
आशंकाएं हर नई चीज के साथ होती हैं, लेकिन यह तर्कसंगत नहीं, क्योंकि लीकेज का असर डेंसिटी और एयरप्रेशर पर निर्भर है। फिर, सेफ्टी के इतने ज्यादा सिस्टम हैं कि लीकेज की गुंजाइश नहीं। रिएक्टर डबल कंटेटमेंट पर तैयार हुए हैं, ऐरोप्लेन टकराने पर भी बाहरी कंटेटमेंट नुकसान होगा और भीतरी परत सुरक्षित रहेगी। रेडिएशन का भय है, तो मानव को नुकसान पहुंचाने के लिए 250-600 रेम डोज चाहिए। जब हमारे वर्कर ही 100 यूनिट के निर्धारित दायरे में काम करते हैं, तो पब्लिकली नुकसान दूर की बात है।

एटमिक ढांचे की सेफ्टी, सिक्युरिटी पर अक्सर सवाल उठते हैं?
हम टेक्नॉलजिकल मेथड पर ध्यान देते हैं, ताकि हमारा एटमिकढांचा तकनीकी तौर पर इतना मजबूत हो कि उसका बेजा इस्तेमाल नहीं हो। आईआईए का 80 फीसदी खर्च सेफगार्ड पर जाता है, जो भविष्य में वहन करना मुश्किल होगा। इसलिए हमने एडवांस हैवी वाटर फास्ट रिएक्टर डिवेलप किया है। उसमें 80 फीसदी ईंधन थोरियम व 20 फीसदी यूरेनियम होगा, तो प्लूटोनियम 20 फीसदी ईंधन में बन जाएगा। इसका गलत फायदा उठाना संभव नहीं। यह सेफ्टी, सिक्युरिटी दोनों लिहाज से बेहतर है। ऐसे रिएक्टर की मांग विदेशों में भी बढ़ेगी।

विदेशी रिएक्टर्स आ रहे हैं, क्या यहां भी हाई-टेक रिएक्टर डिवेलप हो रहे हैं?
तकनीकी तौर पर हम समृद्ध हैं। यहां यूरेनियम कम है, इसलिए प्रेशराइज्ड रिएक्टर के बारे में सोचा गया, इसमें यूरेनियम का बेहतर इस्तेमाल होगा। ओवर इंपोर्टेड रिएक्टर में हैवी वॉटर की जगह साधारण पानी यूज होता है और 20-25 फीसदी यूरेनियम की बचत होती है। यहां आ रहे यूरेनियम से उद्योग में प्रयोग होने वाले इक्विपमेंट (यूरेनियम से प्लूटोनियम बनाने वाला) के 95 फीसदी बनाने में हम सक्षम हैं। इंपोर्ट से एकफायदा यह है कि हमारी इंडस्ट्री को भी बाहर सप्लाई का मौका मिलेगा।

क्या फॉरेन कंट्री रिएक्टर लेने की शर्त पर यूरेनियम दे रहे हैं?
ऐसा कुछ नहीं है, क्योंकि नामीबिया, कजाकमंगोलिया आदि से रिएक्टर की बजाय सीधा यूरेनियम ले रहे हैं। कुछ देशों ने विश्वस्तर पर लाने में मदद की, उनके प्रति हमारी जिम्मेदारी बनती है। कई इंटरनैशनल कंपनियां यहां प्लांट्स लगाने की तैयारी में हैं, जिससे देश में तरक्की होगी। हम प्रेशर वेसल रिएक्टर ले रहे हैं, जिनकी फैक्टरी कम है। भारत को 40 हजार मेगावाट ऊर्जा की जरूरत है, ऐसे में बड़े वेसल बनाने की क्षमता काफी आगे होनी चाहिए। हमारे देश में बनने वाला रिएक्टर सस्ता पड़ेगा, ऐसे में आउटसोर्स की गुंजाइश बढ़ जाती है।

संभव है कि इंपोर्ट की बजाय हम अपने रिएक्टर बाहर भेंजें?
हमारे रिएक्टर बाहर जाने के लिए उपयुक्त हैं, (220 और 540 मेगावाट के रिएक्टर अभी प्रचलित नहीं हैं), कई देशों में छोटा और कम लागत वाला रिएक्टर चाहिए, क्योंकि वे सीख रहे हैं। उनके लिए भारत मार्केट है, कुछ देशों ने संपर्क  किया है, पर हम अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के बाद ही सोचेंगे। इंपोर्ट रोकने की बात है, तो यह स्पॉट डिसीजन होगा। हमारे कैलकुलेशन में आयात के साथ-साथ हमारा खुद का प्रोग्राम चलता रहे, तो तीन-चार दशकबाद हम ऐसी स्थिति में होंगे कि प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष पांच हजार यूनिट बिजली उत्पादन कर सकेंगे, जो एकडिवेलप स्टेटस के लिए जरूरी है।

भाभा ट्रॉन की सफलता के बाद ऐसी और मशीनें विकसित हो रही हैं?
हम वैरिएशन एक्सिक्लेटर की जगह गामा सोर्स इस्तेमाल करते हैं, इसीलिए भाभा ट्रॉन सफल है। टेक्नॉलजी ऐसी हो, जो छोटे शहरों में बिजली की कमी पर भी चले, फिलहाल हाईस्टैंडर्ड मशीनों का मेंटनेंस मुश्किल है। भाभा ट्रॉन वियतनाम, श्रीलंका जैसे विकासशील देशों के लिए सफल है, वहां एक्सपोर्ट भी हो रहा है। कैंसर ट्रीटमेंट के लिए ब्रेकीथेरेपी भी है (भाभा ट्रॉन में ऊपर से किरण पुंज डालकर निर्धारित जगह पर रेडिएशन करते हैं, जबकि ब्रेकीथेरेपी में चावल के छोटे दाने जैसा रेडियोएक्टिव डालकर ट्रीट करते हैं)। फिलहाल, इसकी डिलीवरी मशीन इंपोर्ट हो रही है, यहां भी रिसर्च चल रहा है, जल्द परिणाम मिलेंगे।

सोलर एनर्जी के क्षेत्र में कितने आगे हैं?
इसकी कई तकनीकहैं, लेकिन एफिसिएंशी ज्यादा नहीं है। एकतकनीकसोलर टॉवर की है, जिसकी एफिसिएंशी काफी हाई होती है। उसमें सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा को एकवेसल पर फोकस कर 700-800 डिग्री सेल्सियस की हीट पर मशीन सॉल्ट को डंप करते हैं। ऊर्जा का ये कंवर्जन हाई टेंपरेचर पर होता है, जिससे ऊर्जा की एफिसिएंशी 30-40 फीसदी तकजा सकती है। इस तकनीक को डिवेलप किया जा रहा है। मॉल्टेन सॉल्ट पर भी लूप बन रहा है, जिसमें 700-800 डि.से. पर इंजिनियरिंग का एक्सपेरिमेंट कर सकते हैं।

न्युक्लियर एनर्जी के बाद क्या विकल्प हैं, क्या इससे इतर काम चल रहा है?
हमारा मैंडेट न्युक्लियर एनर्जी है, अन्य तकनीक (पेयजल, केमिकल इंजि., मेमेरेन टेक्नॉलजी आदि) पर भी रिसर्च जारी है। न्युक्लियर एनर्जी में भी थोरियम के स्टेज पर पहुंचे, तो हाई टेंपरेचर रिएक्टर आएंगे। हाइड्रोजन जेनरेट पर भी काम जारी है, जिसमें मॉल्टेन सॉल्ट पर 800-900 डि.से. के बीच पूरी प्रक्रिया चलेगी। सोलर और विंड पावर क्लीन एनर्जी है, लेकिन बड़े शहरों में फिलहाल संभव नहीं। भविष्य में न्युक्लियर और रिनेवल एनर्जी स्थाई स्रोत बनेंगे, क्योंकि कोल और वॉटर एनर्जी की लिमिटेशन है।

कल्पकम रिएक्टर में बीएआरसी की भूमिका क्या है?
कल्पकम में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर बन रहा है, जो प्लूटोनियम और यूरेनियम का मिक्सअप फ्यूएल कहलाएगा। वर्तमान परमाणु बिजली घर प्लूटोनियम बना रहे हैं, बीएआरसी की जिम्मेदारी इस रिप्रॉसेसिंग के लिए फ्युएल बनाने और वहां तक पहुंचाने की है। जब फास्ट ब्रीडर रिएक्टर प्रोग्राम तेजी से बढ़ेगा, तो इसकी अलग व्यवस्था होगी। अभी न्युक्लियर ऑइल रिप्रॉसेसिंग की टेक्नॉलजी डिवेलप हुई है, इसका प्रयोग कर हमने प्लूटोनियम निकाला है। अन्य तकनीकपर भी रिसर्च जारी है।

टेक्नॉलजिज से जुड़े कौन- कौन से इंटरनैशनल रिसर्च में बीएआरसी शामिल है?
एक्सेलेरेटर ड्रिवेन टेक्नॉलजी पर हम फॉरेन कंट्रीज के साथ काम कर रहे हैं। इसमें इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन को बिजली द्वारा तेजी से दौड़ाते हैं, फिर किसी हैवी पदार्थ (सॉल्टेन लेड, यूरेनियम आदि) पर छोड़ते हैं, तो बड़ी मात्रा में न्यूट्रॉन्स निकलते हैं, जो परमाणु विखंडन के लिए जरूरी है। फिलहाल, रिएक्टर से निकले न्यूट्रॉन से परमाणु विखंडन करते हैं, जिसमें न्यूट्रॉन्स लॉस हो रहे हैं। अगर, इसे बाहर बनाएं, तो लॉस रोक सकते हैं। न्यूट्रॉन रिएक्टर से हीट तैयार कर बिजली बनेगी। इसमें बाहर से कुछ नहीं डालना है, ये अपने आप न्यूट्रॉन ऑब्जर्व कर चलता रहेगा। इसके अलावा ईटर (यूरेनियम के विखंडन से पावर प्रॉडक्शन), मानव निर्मित प्लूटोनियम, न्युक्लियर फ्युजन (सूर्य में हल्की चीजों के एक-दूसरे से चिपक कर संलयन द्वारा ऊर्जा निकालने की प्रक्रिया) आदि पर रिसर्च जारी है।

क्या रिसर्च प्रोग्राम पर भी इंटरनैशनल प्रेशर पड़ते हैं?
हमारा रिसर्च प्रोग्राम खुद का है, अभी तकतो कोई दिक्कत नहीं हुई। जिन देशों ने एमटीपी पर साइन किया होगा, उन्हें रोक-टोक संभव है (जैसे कुछ देशों के लिए प्लूटोनियम बनाने जैसी या अन्य सुरक्षा संबंधी अड़चनें हो सकती हैं), लेकिन हम प्रेशर से ऊपर निकल चुके हैं।

न्युक्लियर एनर्जी का भविष्य कैसा है?
जहां तकमेरा विजन है, तो न्युक्लियर एनर्जी का दायरा 4700 मेगावाट से बढ़कर 600 हजार मेगावाट होना चाहिए। भविष्य में कोल्ड फायर स्टेशन की जगह न्युक्लियर पावर प्लांट लगने चाहिए, क्योंकि कोल फायर स्टेशन (स्रोत की कमी, पर्यावरण या अन्य कारण) शिथिल पड़ सकते हैं। इन्हीं उद्देश्यों के मद्देनजर एडवांस रिएक्टर डिजाइन हुए, जिनमें सेफ्टी, सिक्युरिटी के हर पहलू पर गौर किया गया है। हर स्थिति में रिएक्टर चलाने की तकनीक डिवेलप कर रहे हैं, ताकि बिजली-पानी सप्लाई बंद होने, कोई हिस्सा डैमेज होने या गलत हाथों में जाने आदि पर भी रिएक्टर्स चलते रहें। फ्यूजन रेडियस को देखते हुए काम कर रहे हैं, ताकि भविष्य में सैकड़ों रिएक्टर बनें, तो सेफ और सिक्योर हों।

Saturday, July 27, 2013

बाल ठाकरे: कितने मिथक, कितना सत्य

ताकझांक का सिलसिला अब चल निकला है। इस बार हम महाराष्ट्र की शान बालासाहेब ठाकरे से जुड़े अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाल रहे हैं। नवबर, 2012 में मुंबई एनबीटी में छपे आलेख में बालासाहेब से जुड़ी रोचक बातें स्पष्ट की गई हैं। 
देखें, समझें और अपनी प्रतिक्रियाएं दें:


शिवसैनिकों से जुबानी संपर्क
बाल ठाकरे को लेकर तमाम मिथक और भ्रांतियां रहीं, लेकिन इन सबसे बेपरवाह ठाकरे अपने उसूलों, सिद्धांतों, बातों पर सदैव अडिग रहे। कभी वे अपने बयानों से पलटे नहीं, चाहें परिणाम कुछ भी हों। एक आम धारणा थी कि वे प्रत्येक शिवसैनिक के संपर्क में हैं, लेकिन उन्होंने शिवसैनिकों से संपर्क का कभी कोई चैनल तैयार नहीं किया, वे बस बोलते और शिवसैनिक उनका अनुसरण करते, मानों उनकी कहीं बातें पत्थर की लकीर हों।
बाहर से कठोर, भीतर से नर्म
शिवसेना अपने जन्म से आज तक केवल एक ही आदमी के करिश्मे से बंधी रही, वह हैं बाल ठाकरे। सिर्फ उनमें ही अपने दम पर मुंबई जैसे दिन-रात चलने वाले शहर को ठहराने की कूवत थी। साल 1966 में शिवसेना के जन्म से आज तक महाराष्ट्र में न जाने कितने मुख्यमंत्री आए और गए, अन्य दलों में कितने नेता बदले, लेकिन महाराष्ट्र में एक चीज नहीं बदली, वह थे बाल ठाकरे। जी हां, वे सही मायने में महाराष्ट्र की शान हैं। उन्हें करीब से जानने वाले कहते हैं कि वे नारियल की भांति बाहर से कठोर और अंदर से मीठे, नाजुक और नर्म थे। यही वजह थी कि वे निर्णयों पर अडिग रहते और अपने पास आने वाले हर दुखियारे की ढाल बनते। इसके अलावा किसी की क्या मजाल कि कोई उनसे जबरन कुछ करा ले।
तालियां मिलीं, पर वोट में देरी
उनका करिश्मा ही था कि भीड़ उन्हें सुनने जरूर आया करती थी, मंच पर उनके भाषण शुरू होने से पहले लाखों का हुजूम रहने पर भी सन्नाटा पसरा होता था, ताकि उनके कहे शब्दों में कुछ सुनने को छूट न जाएं। हालांकि, लाखों श्रोताओं को बटोरने वाले ठाकरे को वोट बटोरने में काफी लंबा राजनीतिक वक्त लगा, यही वजह थी कि 1995 तक महाराष्ट्र विधानसभा में उनके एक मात्र विधायक छगन भुजबल ही हुआ करते थे।
इश्यू भुनाने में महारत, आरोपों से बेपरवाह
इश्यू उठाने और उन्हें भुनाने में ठाकरे को महारथ हासिल थी। राजनीतिक द्वेष, संकीर्णता, एकाकीपन जैसे तमाम आरोपों को दरकिनार करते हुए वे मराठी माणुस का मन टटोलने की ताकत रखते थे। यही वजह थी कि मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की साधारण सी चर्चा को उन्होंने राज्यव्यापी इश्यू बना डाला और सीधे-सीधे कांग्रेस पर निशाना साधा कि वह मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की साजिश रच रही है। ऐसे ही, जब बाल ठाकरे ललकारते और बंद का ऐलान करते, तो क्या मजाल कि पत्ता भी खड़क जाए। बाला साहेब की अपील देव वचन जैसा असर दिखाती और बंद का ऐसा हौवा खड़ा होता कि सड़कों, गलियों, शॉपिंग सेंटरों, सोसायटियों तक में सन्नाटा पसरा रहता। बंद की अवधि शुरू होने से घंटों पहले ही माहौल बन जाता और घंटों बाद तक जन-जीवन ठहरा रहता।
सत्ता का लालच नहीं, पर सत्ता में दखल
उद्धव हों या राज, या कोई और, कोई ऐसा नेता नहीं हुआ, जो युवाओं को करिश्माई ढंग से रिझा सके। इसकी कई वजहें हैं, बाल ठाकरे को कभी सत्ता नहीं चाहिए, उनकी राजनीति स्वस्फूर्त है, जिसमें भीड़ को जगाने की अकूत क्षमता है। उनके तौर तरीकों को राजनीतिक मापदंड पर परखना बेमानी होगी, क्योंकि उनमें दुर्लभ किस्म की ईमानदारी थी और उनके तौर तरीकों में कभी कोई लाग लपेट नहीं दिखा। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं था कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। राजनीति में ऐसा नगण्य ही दिखता है, उन्हें न मुख्यमंत्री बनना था, न ही प्रधानमंत्री, उन्हें तो बस लोगों के बीच उनके साथ रहना था और यही उनकी खासियत है।
लोगों का विरोध, पर लोगों के साथ
द फ्री प्रेस जर्नल में बतौर कार्टूनिस्ट करियर शुरू करने से लेकर टाइम्स ऑफ इंडिया के संडे एडिशन में छपने और खुद का कार्टून वीकली मार्मिक शुरू करने से लेकर 1989 में दैनिक सामना शुरू करने तक, या फिर राजनीति में आकर कोलाहल मचाने और हिंदू हृदय सम्राट बनने तक बाल ठाकरे की हर अदा दूसरों से जुदा थी। हर काम वे दिल खोलकर करते थे, महाराष्ट्र में गुजरातियों, मारवाडिय़ों और उत्तर भारतीयों के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ आंदोलन से लेकर मराठी माणुस के हितों की रक्षा के लिए सीना ताने खड़े रहने वाले ठाकरे ने कभी भी कहीं भी झुकना नहीं सीखा। 1995 में शिवसेना-बीजेपी गठबंधन के सत्ता में आने पर बाला साहेब सरकार में न रहते हुए भी उसके फैसलों को प्रभावित करते थे, इसीलिए उन्हें रिमोट कंट्रोल तक का नाम दिया गया। लेकिन सभी आरोपों से बेअसर धुन के पक्के बाला साहेब सिर्फ अपने मन की सुनते थे और अपनी गर्जना से पूरे देश की राजनीति को हिलाकर रख देते थे।

संगीत से शुरू होता था बालासाहेब का दिन
 


 

बाल ठाकरे की सिफारिश पर संसद में बजी थी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई







संगीत के प्रति बालासाहेब गजब का लगाव रखते थे। उनके दिन की शुरुआत संगीत से ही होती थी और यह बात उन्होंने खुद शहनाई के शहंशाह उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब से कही थी। दो दिग्गजों (बाल ठाकरे और बिस्मिल्लाह खान) के मिलन की साक्षी और संगीतज्ञ डॉ. सोमा घोष के मुताबिक बालासाहेब की सिफारिश पर ही संसद में उस्तादजी की शहनाई गूंजी थी।
डॉ. घोष ने कहा कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने बालासाहेब से दिली इच्छा जाहिर करते हुए कहा कि वे एक बार संसद में शहनाई की जुगलबंदी पेश करना चाहते हैं। इस पर बालासाहेब ने तत्काल मनोहर जोशी (तत्कालीन लोकसभा स्पीकर) से कह कर उस्तादजी की इच्छा पूरी कराई और 7 अगस्त, 2003 को समूची संसद शहनाई की जुगलबंदी पर झूम उठी। उनके मुताबिक मुंबई में उस्तादजी के साथ पहली जुगलबंदी नेहरू सेंटर में हुई, जहां उद्धव ठाकरे मौजूद थे, अगले ही दिन बालासाहेब ने उन्हें मातोश्री आमंत्रित किया और खुद बेहतरीन मुस्कान के साथ स्वागत किया। बालासाहेब ने उन्हें बताया कि उनके दिन की शुरुआत उस्तादजी की शहनाई से ही होती है। उस्तादजी ने डॉ. सोमा घोष से कहा कि बेटी ये (बालासाहेब) साधारण इंसान नहीं महाराज हैं, इन्हें प्रणाम करो। मुलाकात के बाद बालासाहेब खुद उन्हें (बिस्मिल्लाह खान और डॉ. घोष) बाहर तक छोडऩे आए।
उन्होंने कहा कि बालासाहेब संगीत के इतने शौकीन थे कि एक बार सिर्फ फोन पर बात हुई और वे झट से डॉ. घोष के सीडी का तत्काल विमोचन करने को तैयार हो गए। उनका संगीत के प्रति रुझान ही था कि उन्होंने समस्त कट्टïरता को दरकिनार कर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को भाई जैसा और डॉ. सोमा घोष को बेटी जैसा प्यार दिया और साबित कर दिया कि संगीत का परिसीमन संभव नहीं है।
सर्वेश पाठक

Sunday, July 21, 2013

यह न्युक्लियर क्रांति का दौर है

ब्लॉग बनाकर लंबे समय तक नई पोस्ट न डालना अपराधबोध कराता है, जिससे निजात पाने का यही रास्ता था कि संकोच त्यागो और कुछ पोस्ट कर डालो। लंबे अवकाश के बाद अब पोस्ट-दर-पोस्ट की प्रक्रिया जारी रहेगी। नई शुरुआत करीब तीन साल पुराने इंटरव्यू से हो रही है। चूंकि यह एक वैज्ञानिक का इंटरव्यू है, इसलिए समय के साथ नीचे की बातचीत भी पुरानी लग सकती है, क्योंकि साइंस और टेक्नॉलजी के क्षेत्र में नित नए आयाम बुने जा रहे हैं। फिर भी, इस इंटरव्यू से भारतीय वैज्ञानिकों की दूर-दृष्टि, उनकी सोच और भविष्य का ताना-बाना बुनने का सजग अंदाजा लगाया जा सकता है...

20वां न्युक्लियर पावर प्लांट शुरू होते ही देश का एटमिक पावर प्रॉडक्शन 4780 मेगावाट हो गया। इसके अलावा फ्रांस के सहयोग से 9900 मेगावाट वाले न्युक्लियर पावर प्रॉजेक्ट की भी तैयारी है, जिसके तहत 1650 मेगावाट की छह इकाइयां जैतापुर (महाराष्ट्र) में शुरू होंगी। पहली इकाई 2017-18 तक शुरू होने की उम्मीद है। देश की ऊर्जा जरूरतों और एटमिक स्ट्रक्चर से जुड़े सवालात पर परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष श्रीकुमार बनर्जी से सर्वेश पाठक की बातचीत (नवंबर, 2010):


रिएक्टर्स की दुनिया में नया क्या हो रहा है? फ्यूचर प्लैनिंग के बारे में बताएं? 

-कमर्शल एक्टिविटी की चर्चा करें, तो अभी जो रिएक्टर बने, उनकी एफिशिएंसी बेहतर है। आज हम 90 फीसदी के अपर रिएक्टर चला सकते हैं, जो ज्यादा पावर जेनरेट करेंगे। दूसरा है, इनोवेटिव रिएक्टर, जो हमें आत्मनिर्भर बनाएगा। इसमें मानवीय स्रोत के मदद की आवश्यकता नहीं रहेगी। फिर, फास्ट रिएक्टर्स हैं, जो डबलिंग टाइम (प्लूटोनियम ·न्वर्जन, फिर एनर्जी री-प्रॉसेसिंग में लगने वाला वक्त) को भी कम करेंगे। हम हाई टेंपरेचर में काम करने वाले फोटो थिंसेसिस बेस पर जोर दे रहे हैं। फिलहाल, हमारे यहां हैवी वॉटर से काम चल रहा है, यानी 300 डिग्री सेल्सियस पर, हमारी कोशिश इसे 800 डिग्री सेल्सियस पर चलाने की है, ताकि उसकी हीट (ऊष्मा) से हाइड्रोजन भी बना सकें। कॉर्बन जलाकर कॉर्बन डाई ऑक्साइड मिलता है, जबकि हाइड्रोजन जलाकर पानी मिलेगा, जो इकोफ्रेंडली होगा।



रिएक्टर सेफगार्ड क्या है, देश में कितने रिएक्टर बिजली पैदा कर रहे हैं, इनमें सेफगार्ड वाले कितने हैं?

-सेफगार्ड एक प्रॉसिजर है, जिससे प्लूटोनियम री-प्रॉसेस की प्रक्रिया पर नजर रखी जाती है। अन-सेफगार्डेड रिएक्टर्स में बनने वाले प्लूटोनियम का इस्तेमाल हम पर निर्भर करेगा, जबकि सेफगार्डेड रिएक्टर्स पर इंटरनैशनल नजर रहेगी। हालांकि, इसमें बनने वाले प्लूटोनियम को री-प्रॉसेस कर फिर से रिएक्टर के लिए यूज किया जाता है। सभी इंर्पोटेड यूरेनियम रिएक्टर सेफगार्डेड होंगे। देश में 20 रिएक्टर बिजली पैदा कर रहे हैं, जिनमें कुछ सेफगार्डेड हैं और कुछ इसकी परिधि के बाहर होंगे।

रेत से थोरियम, फिर यूरेनियम के फिल्टराइजेशन और इसके स्रोतों व विकल्प पर प्रकाश डालें?

-विश्व में अभी तक तीन स्तर तक प्लान नहीं किया गया, जो हमारे यहां चल रहा है। इसके तहत पहले हम रेत (देश के दक्षिणी तटीय भागों की रेत में थोरियम पाया जाता है) से थोरियम निकालते हैं, फिर रिएक्टर के जरिए उसे यूरेनियम-233 में बदला जाता है, जिससे न्युक्लियर एनर्जी तैयार करते हैं। हम फिलहाल पहले चरण में हैं। इसके तहत हम ज्यादा प्लूटोनियम भी बनाएंगे। इसमें डबलिंग टाइम, ईंधन का इस्तेमाल भी कम होगा। यूरेनियम के लिए पहले जगह तलाशते हैं, फिर वहां एसिड डालकर यूरेनियम सल्यूशन निकालते हैं। कुछ जगहों पर यूरेनियम है (देश में नहीं, बल्कि कजाकिस्तान जैसे कुछेक देशों में), हमारी कोशिश विदेशी माइनिंग एसेट्स खरीदने की भी है, ताकि हमें डायरेक्ट यूरेनियम मिले।

न्युक्लियर डील के तहत यूरेनियम रिएक्टर आ रहा है, उससे पावर प्रॉडक्शन कितना बढ़ेगा?

-दो साल पहले तक हम यूरेनियम पर निर्भर थे, जिससे दस हजार मेगावाट पावर प्रॉडक्शन हो रहा है। अब थोरियम से यूरेनियम बनाने के लिए फास्ट रिएक्टर बन रहा है, जो 2012-13 तक तैयार हो जाएगा। फिलहाल, सिर्फ रशिया में कमर्शल फास्ट रिएक्टर है। बाहर से आने वाले रिएक्टर्स की इंस्टाल कैपेसिटी 4500 मेगावाट होगी, जिनसे कुछ सालों बाद 35000 मेगावाट न्युक्लियर एनर्जी मिलने लगेगी। हमारा खुद का प्रोग्राम भी बढ़ रहा है, 700 मेगावाट क्षमता वाले रिएक्टर बन रहे हैं, जिनसे फ्यूएल भी बनेगा। ये सब इंडियन टेक्नॉलजी से हो रहा है, जिससे हम आत्मनिर्भर होंगे।

कितने देशों से एटमिक डील हुई है, और कितने पाइप लाइन में हैं?

-अमेरिका के अलावा फ्रांस, रशिया, यूके, कैनेडा, अर्जेंटीना, नामीबिया आदि देशों से एटमिक डील हुई है। जहां तक रिएक्टर्स की बात है, तो पहले यहां रशियन और फ्रेंच रिएक्टर आ रहे हैं। गवर्नमेंट लेवल पर समझौता हुआ है, कंपनी लेवल पर चल रहा है, जो जल्द हो जाएगा। समझौते के तहत हमारे रिएक्टर्स भी एक्सपोर्ट होंगे। ज्यादातर देशों से डील हो गई है, जापान, साउथ कोरिया व कजाकिस्तान से एटमिक डील संबंधी बात-चीत चल रही है।

इंडो-अमेरिकन एटमिक डील को लेकर आशंकाएं उठ रही हैं, क्या हम अमेरिका पर निर्भर हो रहे हैं?

-जिन देशों से भी डील हुई है, वह भारत समेत सभी के लिए फायदेमंद है। हालांकि, इंडो-अमेरिकन डील ज्यादा हाइलाइट हो गया। हम आत्मनिर्भर हैं और इंडो-अमेरिकन डील से हमारी अमेरिका पर निर्भरता कतई नहीं बढ़ी है, इस तरह की आशंकाएं निर्मूल हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ हमारी पहले से बातचीत जारी है, न्युक्लियर एनर्जी पर समस्या नहीं है, न्युक्लियर वेपन्स को लेकर दिक्कतें हैं।

अक्सर यहां-वहां यूरेनियम मिलने की खबरें आती हैं, क्या यह सुरक्षा में सेंध है?

-इधर-उधर यूरेनियम मिलने की अफवाहें उड़ती हैं, लेकिन उन पदार्थ में यूरेनियम-233 तो दूर की बात, यूरेनियम-235 भी नहीं होता, फिर उसकी डेंसिटी भी ना के बराबर होती है। हालांकि, ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि वे पदार्थ किसी भी चूक से नजर आएं। लेकिन, यह स्पष्ट है कि वह खतरनाक नहीं हैं और उनका बेजा इस्तेमाल कतई संभव नहीं। उनसे न एनर्जी बन सकती है और न ही वेपन्स।

रेडियो एक्टिव वेस्ट के इस्तेमाल की कोई टेक्निक डिवेलप हो रही है, रेडिएशन की घटनाओं पर क्या कहेंगे?

-रेडियो एक्टिविटी के सोर्स के तौर पर कोबाल्ट-60 का इस्तेमाल मेडिकल फील्ड, फैक्ट्रियों, गाला इंडस्ट्री आदि में और मशीनों के क्रैक होने पर मेंटिनेंस के लिए करते हैं। वेस्ट यूज व कंट्रोल पर भी काम चल रहा है। रेडिएशन की घटनाएं रोकने के लिए रेगुलर चेकिंग और अन्य इंतजामात में भी लगे हैं। इन्हें फॉर्म करने के पहले जांच कर संतुष्ट होना जरूरी है। इसके अलावा रेडियोएक्टिव पदार्थ की जानकारी और बंदोबस्त भी जरूरी है, जिसके लिए हम गंभीर हैं।


सेफ्टी व सिक्योरिटी पॉइंट ऑफ व्यू से हमारे परमाणु संयंत्र कितने सुरक्षित हैं?

-जहां तक सुरक्षा का प्रश्न है, अभी तक हमारा पूरा एटमिक ढांचा सुरक्षित है, और रहेगा। सुरक्षा के तीन बिंदु होते हैं- सेफ्टी, सिक्युरिटी और सेफगार्ड। हम तीनों लेवल पर सुरक्षित और संरक्षित हैं। हमारे न्युक्लियर पावर का सेफ्टी रिकॉर्ड काफी अच्छा है, हमारे रिएक्टर विश्व के दूसरे रिएक्टर्स से ज्यादा सुरक्षित और लंबी उम्र वाले हैं। सिक्युरिटी के लिहाज से हमारे रेग्युलेटरी ऑपरेशन बेहद सख्त हैं और सेफ्टी के नजरिए से भी हमारे नए डिजाइन वाले रिएक्टर्स के सेफ्टी फीचर्स काफी मजबूत हैं।

न्युक्लियर एनर्जी के क्षेत्र में देश का भविष्य कैसा है?

-निसंदेह हम न्युक्लियर क्रांति के दौर से गुजर रहे हैं, तमाम साइंस्टिफिक डिस्कवरी हो रही है। एक ओर न्युक्लियर एनर्जी, तो दूसरी ओर नॉन पावर अप्लिकेशंस की ओर बढ़ रहे हैं। वल्र्ड में भारत की वैल्यू बढ़ी है, क्योंकि हमारा विकास बिना किसी बाहरी मदद के हुआ है। हम संपन्न ही नहीं, आत्मनिर्भर भी हो रहे हैं। लेकिन, अभी बहुत कुछ बाकी है, कॉमन पीपल पॉइंट ऑफ व्यू से हमें साइंस्टिफिक रिसर्च से आगे बढऩा होगा। जहां तक ग्रोथ का सवाल है, तो हमारी जरूरतें बढ़ रही हैं। ऐसे में, हमारी ग्रोथ दस गुना होनी चाहिए, जहां तक ऊर्जा (एनर्जी, पावर) का सवाल है, तो देश की जरूरत के हिसाब से 40 फीसदी ऊर्जा की कमी है। इसके लिए इसमें न्युक्लियर शेयर बढ़ाना होगा। न्युक्लियर एनर्जी क्लीन एनर्जी है, जो वल्र्ड वाइड फायदेमंद है। हम पूरे स्पेक्ट्रम पर काम कर रहे हैं और दो-तीन दशक बाद विश्व में हमारा कोई सानी नहीं होगा।