Sunday, September 15, 2013

न्युक्लियर एनर्जी का विरोध नहीं, स्वागत करें

 

प्रधानमंत्री द्वारा तारापुर में दूसरे पॉवर रिएक्टर फ्यूएल रिप्रॉसेसिंग प्लांट के उद्घाटन ने रिएक्टर्स की दुनियां में नई क्रांति ला दी है। रिएक्टर्स और एटमिक एनर्जी से जुड़े सवालात पर भाभा एटमिक रिसर्च सेंटर, मुंबई के तत्कालीन डाइरेक्टर डॉ. रतन कुमार सिन्हा (वर्तमान अध्यक्ष, परमाणु ऊर्जा आयोग)  से सर्वेश पाठक की बातचीत के अंश :



जैतापुर न्युक्लियर पावर प्लांट को लेकर हो रहे विरोध पर आपका क्या कहना है?
ऐसा कुछ भी नहीं है कि पब्लिक को नुकसान हो। अफवाहें उड़ती हैं, लेकिन ऐसा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संभव नहीं। सुरक्षा की बात है, तो परमाणु ऊर्जा पर जितनी गहराई से रिसर्च हुआ है, उतना किसी क्षेत्र में नहीं हुआ। पूरा अंतरराष्ट्रीय सिस्टम बना है, जिस पर इंटरनैशनल कोड और गाइडेंस निर्धारित है। इंटरनैशनल रेग्युलेटरी के तहत सभी एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं।

आशंकाएं हैं कि लिकेज या रेडिएशन से आसपास का जनजीवन प्रभावित होगा?
आशंकाएं हर नई चीज के साथ होती हैं, लेकिन यह तर्कसंगत नहीं, क्योंकि लीकेज का असर डेंसिटी और एयरप्रेशर पर निर्भर है। फिर, सेफ्टी के इतने ज्यादा सिस्टम हैं कि लीकेज की गुंजाइश नहीं। रिएक्टर डबल कंटेटमेंट पर तैयार हुए हैं, ऐरोप्लेन टकराने पर भी बाहरी कंटेटमेंट नुकसान होगा और भीतरी परत सुरक्षित रहेगी। रेडिएशन का भय है, तो मानव को नुकसान पहुंचाने के लिए 250-600 रेम डोज चाहिए। जब हमारे वर्कर ही 100 यूनिट के निर्धारित दायरे में काम करते हैं, तो पब्लिकली नुकसान दूर की बात है।

एटमिक ढांचे की सेफ्टी, सिक्युरिटी पर अक्सर सवाल उठते हैं?
हम टेक्नॉलजिकल मेथड पर ध्यान देते हैं, ताकि हमारा एटमिकढांचा तकनीकी तौर पर इतना मजबूत हो कि उसका बेजा इस्तेमाल नहीं हो। आईआईए का 80 फीसदी खर्च सेफगार्ड पर जाता है, जो भविष्य में वहन करना मुश्किल होगा। इसलिए हमने एडवांस हैवी वाटर फास्ट रिएक्टर डिवेलप किया है। उसमें 80 फीसदी ईंधन थोरियम व 20 फीसदी यूरेनियम होगा, तो प्लूटोनियम 20 फीसदी ईंधन में बन जाएगा। इसका गलत फायदा उठाना संभव नहीं। यह सेफ्टी, सिक्युरिटी दोनों लिहाज से बेहतर है। ऐसे रिएक्टर की मांग विदेशों में भी बढ़ेगी।

विदेशी रिएक्टर्स आ रहे हैं, क्या यहां भी हाई-टेक रिएक्टर डिवेलप हो रहे हैं?
तकनीकी तौर पर हम समृद्ध हैं। यहां यूरेनियम कम है, इसलिए प्रेशराइज्ड रिएक्टर के बारे में सोचा गया, इसमें यूरेनियम का बेहतर इस्तेमाल होगा। ओवर इंपोर्टेड रिएक्टर में हैवी वॉटर की जगह साधारण पानी यूज होता है और 20-25 फीसदी यूरेनियम की बचत होती है। यहां आ रहे यूरेनियम से उद्योग में प्रयोग होने वाले इक्विपमेंट (यूरेनियम से प्लूटोनियम बनाने वाला) के 95 फीसदी बनाने में हम सक्षम हैं। इंपोर्ट से एकफायदा यह है कि हमारी इंडस्ट्री को भी बाहर सप्लाई का मौका मिलेगा।

क्या फॉरेन कंट्री रिएक्टर लेने की शर्त पर यूरेनियम दे रहे हैं?
ऐसा कुछ नहीं है, क्योंकि नामीबिया, कजाकमंगोलिया आदि से रिएक्टर की बजाय सीधा यूरेनियम ले रहे हैं। कुछ देशों ने विश्वस्तर पर लाने में मदद की, उनके प्रति हमारी जिम्मेदारी बनती है। कई इंटरनैशनल कंपनियां यहां प्लांट्स लगाने की तैयारी में हैं, जिससे देश में तरक्की होगी। हम प्रेशर वेसल रिएक्टर ले रहे हैं, जिनकी फैक्टरी कम है। भारत को 40 हजार मेगावाट ऊर्जा की जरूरत है, ऐसे में बड़े वेसल बनाने की क्षमता काफी आगे होनी चाहिए। हमारे देश में बनने वाला रिएक्टर सस्ता पड़ेगा, ऐसे में आउटसोर्स की गुंजाइश बढ़ जाती है।

संभव है कि इंपोर्ट की बजाय हम अपने रिएक्टर बाहर भेंजें?
हमारे रिएक्टर बाहर जाने के लिए उपयुक्त हैं, (220 और 540 मेगावाट के रिएक्टर अभी प्रचलित नहीं हैं), कई देशों में छोटा और कम लागत वाला रिएक्टर चाहिए, क्योंकि वे सीख रहे हैं। उनके लिए भारत मार्केट है, कुछ देशों ने संपर्क  किया है, पर हम अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के बाद ही सोचेंगे। इंपोर्ट रोकने की बात है, तो यह स्पॉट डिसीजन होगा। हमारे कैलकुलेशन में आयात के साथ-साथ हमारा खुद का प्रोग्राम चलता रहे, तो तीन-चार दशकबाद हम ऐसी स्थिति में होंगे कि प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष पांच हजार यूनिट बिजली उत्पादन कर सकेंगे, जो एकडिवेलप स्टेटस के लिए जरूरी है।

भाभा ट्रॉन की सफलता के बाद ऐसी और मशीनें विकसित हो रही हैं?
हम वैरिएशन एक्सिक्लेटर की जगह गामा सोर्स इस्तेमाल करते हैं, इसीलिए भाभा ट्रॉन सफल है। टेक्नॉलजी ऐसी हो, जो छोटे शहरों में बिजली की कमी पर भी चले, फिलहाल हाईस्टैंडर्ड मशीनों का मेंटनेंस मुश्किल है। भाभा ट्रॉन वियतनाम, श्रीलंका जैसे विकासशील देशों के लिए सफल है, वहां एक्सपोर्ट भी हो रहा है। कैंसर ट्रीटमेंट के लिए ब्रेकीथेरेपी भी है (भाभा ट्रॉन में ऊपर से किरण पुंज डालकर निर्धारित जगह पर रेडिएशन करते हैं, जबकि ब्रेकीथेरेपी में चावल के छोटे दाने जैसा रेडियोएक्टिव डालकर ट्रीट करते हैं)। फिलहाल, इसकी डिलीवरी मशीन इंपोर्ट हो रही है, यहां भी रिसर्च चल रहा है, जल्द परिणाम मिलेंगे।

सोलर एनर्जी के क्षेत्र में कितने आगे हैं?
इसकी कई तकनीकहैं, लेकिन एफिसिएंशी ज्यादा नहीं है। एकतकनीकसोलर टॉवर की है, जिसकी एफिसिएंशी काफी हाई होती है। उसमें सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा को एकवेसल पर फोकस कर 700-800 डिग्री सेल्सियस की हीट पर मशीन सॉल्ट को डंप करते हैं। ऊर्जा का ये कंवर्जन हाई टेंपरेचर पर होता है, जिससे ऊर्जा की एफिसिएंशी 30-40 फीसदी तकजा सकती है। इस तकनीक को डिवेलप किया जा रहा है। मॉल्टेन सॉल्ट पर भी लूप बन रहा है, जिसमें 700-800 डि.से. पर इंजिनियरिंग का एक्सपेरिमेंट कर सकते हैं।

न्युक्लियर एनर्जी के बाद क्या विकल्प हैं, क्या इससे इतर काम चल रहा है?
हमारा मैंडेट न्युक्लियर एनर्जी है, अन्य तकनीक (पेयजल, केमिकल इंजि., मेमेरेन टेक्नॉलजी आदि) पर भी रिसर्च जारी है। न्युक्लियर एनर्जी में भी थोरियम के स्टेज पर पहुंचे, तो हाई टेंपरेचर रिएक्टर आएंगे। हाइड्रोजन जेनरेट पर भी काम जारी है, जिसमें मॉल्टेन सॉल्ट पर 800-900 डि.से. के बीच पूरी प्रक्रिया चलेगी। सोलर और विंड पावर क्लीन एनर्जी है, लेकिन बड़े शहरों में फिलहाल संभव नहीं। भविष्य में न्युक्लियर और रिनेवल एनर्जी स्थाई स्रोत बनेंगे, क्योंकि कोल और वॉटर एनर्जी की लिमिटेशन है।

कल्पकम रिएक्टर में बीएआरसी की भूमिका क्या है?
कल्पकम में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर बन रहा है, जो प्लूटोनियम और यूरेनियम का मिक्सअप फ्यूएल कहलाएगा। वर्तमान परमाणु बिजली घर प्लूटोनियम बना रहे हैं, बीएआरसी की जिम्मेदारी इस रिप्रॉसेसिंग के लिए फ्युएल बनाने और वहां तक पहुंचाने की है। जब फास्ट ब्रीडर रिएक्टर प्रोग्राम तेजी से बढ़ेगा, तो इसकी अलग व्यवस्था होगी। अभी न्युक्लियर ऑइल रिप्रॉसेसिंग की टेक्नॉलजी डिवेलप हुई है, इसका प्रयोग कर हमने प्लूटोनियम निकाला है। अन्य तकनीकपर भी रिसर्च जारी है।

टेक्नॉलजिज से जुड़े कौन- कौन से इंटरनैशनल रिसर्च में बीएआरसी शामिल है?
एक्सेलेरेटर ड्रिवेन टेक्नॉलजी पर हम फॉरेन कंट्रीज के साथ काम कर रहे हैं। इसमें इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन को बिजली द्वारा तेजी से दौड़ाते हैं, फिर किसी हैवी पदार्थ (सॉल्टेन लेड, यूरेनियम आदि) पर छोड़ते हैं, तो बड़ी मात्रा में न्यूट्रॉन्स निकलते हैं, जो परमाणु विखंडन के लिए जरूरी है। फिलहाल, रिएक्टर से निकले न्यूट्रॉन से परमाणु विखंडन करते हैं, जिसमें न्यूट्रॉन्स लॉस हो रहे हैं। अगर, इसे बाहर बनाएं, तो लॉस रोक सकते हैं। न्यूट्रॉन रिएक्टर से हीट तैयार कर बिजली बनेगी। इसमें बाहर से कुछ नहीं डालना है, ये अपने आप न्यूट्रॉन ऑब्जर्व कर चलता रहेगा। इसके अलावा ईटर (यूरेनियम के विखंडन से पावर प्रॉडक्शन), मानव निर्मित प्लूटोनियम, न्युक्लियर फ्युजन (सूर्य में हल्की चीजों के एक-दूसरे से चिपक कर संलयन द्वारा ऊर्जा निकालने की प्रक्रिया) आदि पर रिसर्च जारी है।

क्या रिसर्च प्रोग्राम पर भी इंटरनैशनल प्रेशर पड़ते हैं?
हमारा रिसर्च प्रोग्राम खुद का है, अभी तकतो कोई दिक्कत नहीं हुई। जिन देशों ने एमटीपी पर साइन किया होगा, उन्हें रोक-टोक संभव है (जैसे कुछ देशों के लिए प्लूटोनियम बनाने जैसी या अन्य सुरक्षा संबंधी अड़चनें हो सकती हैं), लेकिन हम प्रेशर से ऊपर निकल चुके हैं।

न्युक्लियर एनर्जी का भविष्य कैसा है?
जहां तकमेरा विजन है, तो न्युक्लियर एनर्जी का दायरा 4700 मेगावाट से बढ़कर 600 हजार मेगावाट होना चाहिए। भविष्य में कोल्ड फायर स्टेशन की जगह न्युक्लियर पावर प्लांट लगने चाहिए, क्योंकि कोल फायर स्टेशन (स्रोत की कमी, पर्यावरण या अन्य कारण) शिथिल पड़ सकते हैं। इन्हीं उद्देश्यों के मद्देनजर एडवांस रिएक्टर डिजाइन हुए, जिनमें सेफ्टी, सिक्युरिटी के हर पहलू पर गौर किया गया है। हर स्थिति में रिएक्टर चलाने की तकनीक डिवेलप कर रहे हैं, ताकि बिजली-पानी सप्लाई बंद होने, कोई हिस्सा डैमेज होने या गलत हाथों में जाने आदि पर भी रिएक्टर्स चलते रहें। फ्यूजन रेडियस को देखते हुए काम कर रहे हैं, ताकि भविष्य में सैकड़ों रिएक्टर बनें, तो सेफ और सिक्योर हों।

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