Wednesday, December 23, 2009

राजीव, 'मेरा नमन

हिंदी के प्रतिभाशाली कवि राजीव सारस्वत भी 26/ 11 को ताजमहल होटल में जान गंवाने वालों में थे। बुरी तरह घायल होने के बावजूद उन्होंने पत्नी सुनीता से मोबाइल पर संवाद जारी रखा। सुनीता बतायी हैं, 'उनका अंतिम एसएमएस शाम 4.20 बजे आया। फिर मैसेज सेंडिंग फेल बताने लगा, मैंने घबराकर फोन करना शुरू किया, तो मोबाइल डिस्कनेक्ट हो गया। ... दो दिन बाद रूम में गये, तो केवल शरीर ही मिला।Ó

सर्वेश पाठक

मुम्बई। 26/11 की उस काली रात घर वालों को ताजमहल होटल से अपनी कुशलक्षेम बताने के बाद वह आवाज अपना दायित्व निभाते हुए एकाएक आतंकी गोलियों का शिकार हो जायेगी, यह किसने सोचा था। वह मनहूस रात संवेदनशील कवि राजीव जी की शहादत के साथ छोटे से सारस्वत परिवार का सबकुछ लूट ले गई। राजीव 26/11 की रात अपने कुछ सहयोगियों के साथ जरूरी ऑफीशियल मीटिंग निपटाने के बाद अपने कमरे में गए और फिर नहीं लौटे।

शहीद राजीव की पत्नी सुनीता सारस्वत बताती हैं कि 26/11 की सुबह वे काफी खुश थे और बोले कि तीन दिनों के ताज प्रवास से लौटकर कविता संग्रह का प्रकाशन कराएंगे, पर विधि के विधान में कुछ और ही था। उस रात नौ बजे उनका फोन आया कि टीवी खोलो, अटैक हुआ है, फिर बताया कि होटल प्रबंधन ने लाइट ऑफ करने और बाहर नहीं निकलने को कहा है। उनके तीन साथी नीचे तल मंजिल पर खाने गए थे, राजीव चिंतित थे कि वे वापस नहीं लौटे। विधि ने कुछ और ही लिख रखा था, जिस संसदीय दल के साथ राजीव ड्यूटी निभा रहे थे, उनके अलावा सभी लोग जान बचाकर सुरक्षित निकल आये।

आतंकियों से पहला सामना हुआ तो उंगली में गोली का घाव लेकर कमरे में लौट आये। जिस सहयोगी को उन्होंने नीचे गये लोगों का जायजा लेने भेजा था, उसे ïिलफ्ट से निकलते ही आतंकियों की गोली ने घायल कर दिया। आतंकियों ने उसे ठोकर मारी और मृत समझकर आगे बढ़ गए, वह सांस रोके पड़ा रहा और बच गया।

इधर, बेचैन सुनीता रातभर टीवी की भयावह तस्वीरों और मोबाइल पर खुद राजीव से लगातार होने वाली बातचीत से उनके सुरक्षित निकलने की दुहाई देती रहीं। मध्यरात्रि करीब तीन बजे फोन पर उन्होंने कहा कि अभी निकलना खतरनाक है, कमरे का लोकेशन भी उन्हें स्पष्टï नहीं था।

हमले का दूसरा दिन और भी बुरी खबरें लेकर आया। दोपहर साढ़े बारह बजे फोन आया कि किसी ने दरवाजा खटखटाया है। जंजीर लगाकर जैसे ही दरवाजा खोला, सामने से गोली चली और दाहिने हाथ की उंगली चोटिल... फिर तुरंत दरवाजा बंद कर दिया, फोन पर ही डॉक्टरों ने सलाह दी कि कसकर बांधों। फिर वे बाथरूम में चले गए, दर्द असहनीय था और होटल वाले असमर्थ थे।

पहली रात की तरह दूसरी पर भी आतंक के साये घने बकौल सुनीता उनकी छठी इंद्रिय ने अनहोनी के संकेत दे दिए थे, फिर करीब साढ़े तीन बजे फोन आया, तो बोले कि आतंकी दोबारा कोशिश करेंगे। राजीव मोबाइल पर सुनीता को बता रहे थे कि पास ही धमाके हो रहे हैं। मैं ढांढस बधाने के अलावा क्या कर सकती थी, बड़ी बेटी गोवा में थी, जो खबर लगते ही फोन पर रोने लगी।

राजीव का अंतिम एसएमएस शाम 4.20 बजे आया, फिर मैसेज सेंडिंग फेल बताने लगा, मैंने घबराकर फोन करना शुरू किया, तो मोबाइल डिस्कनेक्ट हो गया। बीच में हमें होटलवालों ने बताया कि उन्हें सुरक्षित निकाल लिया है, पर यह भुलावा था। फिर, 28 को सारा दिन हमें अंदर जाने नहीं मिला, अगले दिन रूम में गए, तो शरीर मिला, बिस्तर के स्प्रिंग धमाकों में बाहर निकल आए थे, सामान अस्तव्यस्त था, छज्जे उड़े हुए थे, ताज वालों से मिन्नतें की कि कोई अंतिम निशानी मिल जाए, पर कुछ भी नहीं मिला।

'अब आगे क्या!Ó के प्रश्न पर सुनीता बताती हैं कि दोस्तों, परिवार, रिश्तेदारों व कंपनी वालों ने काफी सपोर्ट किया। कंपनी ने जॉब का भी विकल्प दिया, पर मैंने नहीं किया। राज्य सरकार ने पांच लाख रुपए की सहायता दी, केंद्र ने भी कुछ मदद राशि (दो-तीन लाख रुपए) देने को कहा था, पर शायद प्रक्रिया में वक्त लगता है। होटल प्रबंधन से कोई मदद राशि नहीं मिली और ना ही उन्होंने ऐसी कोई पेशकश की। सामने सबसे बड़ी चुनौती थी दोनों बच्चियां.. अगर मैं टूटती, तो उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता और अब तो हम सभी एक-दूसरे का सहारा हैं। बच्चे उनसे काफी अटैच थे और हमें लगता है, जैसे वह किसी न किसी रूप में अपनी उपस्थिति का एहसास दिलाते हैं। मैं बच्चों में पति व बच्चे मुझमें पिता तलाश लेते हैं। दोनों बेटियां मेधावी हैं, बड़ी मॉस मीडिया में ग्रेजुएशन कर रही है और छोटी बारहवीं में है।

हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने भी उनके नाम से दो अवार्ड शुरू किए हैं। राजीव सारस्वत अवार्ड सुनीता ने और श्रुति संवाद साहित्य कला अकादमी ने मिलकर शुरू किया है। पहला सम्मान कवि जगदीश सोलंकी को दिया गया। पुस्तक वे पहले ही लिख गए थे, बस शीर्षक देना था, जो सुनीता ने दिया। नाम दिया- 'मेरा नमनÓ।

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